Wednesday, March 23, 2011

राष्ट्रपति ने पलटे बिहार के गौरवशाली अतीत के पन्ने

बिहार विधान परिषद के शताब्दी समारोह में राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटील ने बिहार के गौरवशाली अतीत के पन्ने खूब पलटे। उन्होंने प्राचीन बिहार के वैभव और स्वतंत्रता संग्राम में बिहार के योगदान को अपने संबोधन के केंद्र में रखा। इस दौरान उन्होंने महात्मा गांधी के उस वक्तव्य का खासतौर पर जिक्र किया, जिसमें पटना की अपनी प्रार्थना सभा में बापू ने कहा था कि 'यह बिहार ही था जिसने मुझे पूरे भारत में पहचान दी। जब मैं चंपारण पहुंचा तो पूरा देश जाग उठा।'

राष्ट्रपति ने अपने संबोधन का अंत सम्राट अशोक के उस मूलमंत्र से किया। यह वस्तुत: सम्राट की राजाज्ञा थी-'वास्तव में मैं सभी के कल्याण को अपना दायित्व मानता हूं और इसके मूल में है-कठोर परिश्रम तथा कार्य का तुरंत निपटारा। जन कल्याण को बढ़ावा देने से अधिक महान कार्य कोई हो नहीं सकता।'

राष्ट्रपति ने कहा कि बिहार का इतिहास वास्तव में संस्कृति और सभ्यता का इतिहास है। यहां से भारत के दो बड़े साम्राज्यों का उदय हुआ। सबसे पहले सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की नींव रखी। इसके बाद चंद्रगुप्त प्रथम के समय गुप्त साम्राज्य की स्थापना हुई। गुप्त युग को भारत का स्वर्ण युग कहा गया है। इस युग में साहित्य, विज्ञान, गणित, धर्म तथा दर्शन ने बहुत तरक्की की। कालीदास, वराहमिहिर, विष्णु शर्मा, वात्स्यायन तथा पुष्पदंत जैसे विद्वान इसी युग में हुए। बिहार में स्थित ऐतिहासिक विक्रमशिला तथा नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत में विश्व के महानतम विश्वविद्यालय थे।

राष्ट्रपति ने कहा कि बिहार की भूमि ने न केवल देश को बल्कि पूरी दुनिया को महान चिंतक, ज्ञानी और दार्शनिक दिए। बिहार की यह धरती, धार्मिक और सांस्कृतिक समन्वय की भी धरती है। इसी प्राचीन भूमि पर महर्षि बाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी। जैन धर्म के 24 वें तीर्थकर भगवान महावीर वैशाली में पैदा हुए थे। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान बुद्ध की कार्यस्थली भी बिहार ही थी। पटना में सिखों के 10 वें गुरु गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ था। इसी तरह बहुत बड़े सूफी संत हजरत मनेरी बिहार से हुए हैं।

स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा करते हुए राष्ट्रपति ने सबसे पहले बाबू कुंवर सिंह को याद किया। उन्होंने कहा कि कुंवर सिंह का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भारी योगदान है। डा.राजेंद्र प्रसाद गांधी जी के साथ आंदोलन में जुड़े थे। हमारे संविधान सभा के अध्यक्ष व स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति बने।

लोकतंत्र की चर्चा करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था में विधायिका को उसके सदस्यों का बहुत जवाबदेह ढंग से काम करना पड़ता है। बिहार की भूमि पर बहुत पहले लिच्छिवियों ने गणतंत्र का बीज बोया था। जहां लोग शासन में सहभागिता करते हुए समृद्धि और सौहार्द से रहते थे।

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